श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
सर्वेश्वर, श्रिय:पति, श्रीमन नारायण, भूमि का बोझ कम करने के लिए श्री कृष्ण का अवतार लिया | भूमि के बोझ को मिटाने की परिश्रम में उनका सबसे मुख्य कार्य था महाभारत युद्ध संचालन करना | इस युद्ध को कृष्ण परमात्मा खुद अग्रस्तित रचाया, सेनाओं की समूह को निर्धारित करके , पार्थ का सारथी बनके, हर एक समय अर्जुन का साथ देके, उसकी सहायता तथा रक्षा करके, शस्त्र का उपयोग न करने का व्रत लेकर भी शस्त्रोपयोग करके , दिन को रात बनाके, दुश्मनों की मृत्यु का उपाय देकर , इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण स्वयं इस युद्ध को पूरी तरह से समाप्त किया | अर्जुन तो युद्ध करने के लिए केवल एक व्याज ( नाम के वास्ते ) था | जब अर्जुन युद्ध करने में उदासीनता दिखाई तो कृष्ण ने उसको गीतोपदेश दिया |
स्वामी आळवन्दार अपने गीतार्थ संग्रह में बताया है कि भगवान श्रीमन नारायण ने इस गीता शास्त्र के द्वारा इस बात को निश्चित रूप से स्थापित किया है कि, उनको कर्म योग, ज्ञान योग और भक्ति योग के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है |
इस गीता शास्त्र में १८ अध्याय , ७०० श्लोक हैं | स्वामी आळवन्दार और कई आचार्य महापुरुष , इन १८ अध्यायों को तीन षठ-अंगों में ( एक षठ-अंग – ६ अध्यायों का सम्मूह ) विभाजित किया है |
श्री भगवद्गीता के हर एक षठ-अंग में उच्चरित अर्थों को, स्वामी आळवन्दार अपने गीतार्थ संग्रह में , बहुत संक्षिप्त और सरल रूप में दर्शाया है | वे हैं –
- पहले षठ अंग में, देह और आत्मा के अंतर को पहचानना , कर्म योग तथा ज्ञान योग के माध्यम से योग-सिद्धि तथा आत्मानुभव प्राप्त होने के बारे में स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है |
- दूसरे षठ अंग में यह कहा गया है कि, ज्ञान युग्मित कर्म योग के माध्यम से जो भक्ति योग उत्पन्न होता है , उसी से, परतत्व स्वरुप एम्पेरुमान् के प्रति स्वाभाविक भगवतानुभव प्राप्त कर सकते हैं |
- तीसरे षठ अंग में, सूक्ष्म रूप में उपस्थित ( अदृश्य ) मूल प्रकृति और जीवात्मा , स्तूल रूप में प्रकट ( प्रत्यक्ष ) अचेतन वस्तु, इन सबसे अतुलनीय सर्वेश्वर एम्पेरुमान्, कर्म योग , ज्ञान योग तथा भक्ति योग , इनको प्राप्त करने के तरीके , इत्यादि के बारे में, पहले अध्यायों में अनकहे विषयों को समझाया गया है |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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