श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
संजय उवाच
एवमुक्त्वार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत् ।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः ৷৷
पद पदार्थ
एवं – इस प्रकार
उक्त्वा – कहकर
सशरं चापं – अपने धनुष और बाण को
विसृज्य – गिराकर
शोकसंविग्नमानसः – शोकग्रस्त मन से
सङ्ख्ये – युद्धक्षेत्र में
रथोपस्थे – अपने रथ पर
उपाविशत् – रथ के ऊपरी भाग पर
सरल अनुवाद
इस प्रकार कहकर अर्जुन शोकग्रस्त मन से , अपने धनुष और बाण को गिराकर , युद्धक्षेत्र में अपने रथ पर बैठ गया | इस प्रकार संजय ने धृतराष्ट्र से कहा |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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