श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
भोगैश्वर्य प्रसक्तानां तयापहृत चेतसाम् ।
व्यवसायात्मिका बुद्धि: समाधौ न विधीयते ॥
पद पदार्थ
भोगैश्वर्य प्रसक्तानां – उन अज्ञानियों के लिए जो स्वर्ग आदि का आनंद लेने के काम में लगे हुए हैं
तया – उन शब्दों/चर्चाओं के कारण
अपहृत चेतासाम् – नष्ट बुद्धि होना
व्यवसायात्मिका – दृढ़ विश्वास जो स्वयं (आत्मा) पर केंद्रित है
बुद्धि: – कर्म योग में ज्ञान (जैसे कि पहले बताया गया है)
समाधौ– उनके मन में
न विधीयते – उत्पन्न नहीं होता
सरल अनुवाद
उन चर्चाओं के कारण नष्ट हुए बुद्धि के साथ ,स्वर्ग आदि का आनंद लेने के काम में लगे हुए उन अज्ञानियों के मन में, कर्म योग में ज्ञान (जैसे कि पहले बताया गया है), स्वयं (आत्मा) पर केंद्रित दृढ़ विश्वास उत्पन्न नहीं होता है।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी
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