२.२६ – अथ चैनं नित्यजातं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय २

<<अध्याय २ श्लोक २५

श्लोक

अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्‌ ।
तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुम् अर्हसि ॥

पद पदार्थ

महाबाहो – तेजस्वी
अथ: – पहले समझाए गये के विपरीत
एनं – यह आत्मा
नित्यजातं – पुन: पुन: जन्म लेता है
नित्यं मृतं वा च – शरीर जो पुन: पुन: मर जाता है
मन्यसे ( चेत ) – अगर तुम मानते हो
तथ अपि – फिर भी
त्वं – तुम
एवं – इस प्रकार
शोचितुं – दुःखित होने का
न अर्हसि – कोई कारण नहीं है

सरल अनुवाद

हे तेजस्वी ! पहले समझाए गये के विपरीत, अगर तुम मानते हो कि यह आत्मा , शरीर जैसा पुन: पुन: जन्म लेता है और पुन: पुन: मर जाता है , फिर भी, तुम इस प्रकार दुःखित होने का कोई कारण नहीं है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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