श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
धूमेनाव्रियते वह्निर् यथादर्शो मलेन च।
यथोल्बेनावृतो गर्भस् तथा तेनेदमावृतम्॥
पद पदार्थ
वह्नि: – अग्नि
यथा धूमेन आव्रियते – जैसे धुआँ से व्याप्त है
आदर्श: – दर्पण
यथा च मलेन ( आव्रियते ) – जैसे धूल से व्याप्त है
गर्भ: – गर्भ
यथा च उल्बेन – उल्ब की तरह
आवृत: – व्याप्त है
तथा – उसी तरह
तेन – वासनाओं से
इदं – ये सारे चेतन ( जीवात्मा )
आवृतम् – व्याप्त है
सरल अनुवाद
जिस प्रकार अग्नि धुआँ से व्याप्त है, दर्पण धूल से व्याप्त है, गर्भ उल्ब से व्याप्त है, उसी प्रकार वासना वासना इस चेतनायों ( जीवात्माओं ) के समूह में व्याप्त है |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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