३.३७ – काम एष क्रोध एष

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ३

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श्लोक

श्रीभगवानुवाच
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्॥

पद पदार्थ

श्री भगवान उवाच – भगवान श्री कृष्ण ने उत्तर दिया
एष: – वह कारण जिसके बारे में तुमने प्रश्न किया ( लौकिक सुख )
रजोगुण समुद्भवः – रजो गुण से उत्पन्न होता है ( अनुराग )
महाशन: – सर्व भोक्त
काम एव – अभिलाषा ही
एष: – यह अभिलाषा ( निरुद्ध रूप में )
महा पाप्मा – भयानक पाप करने को प्रेरित करता है ( उसे जो इन अभिलाषाओं को निरुद्ध करने का प्रयास करता है )
क्रोध: ( भवति ) – क्रोध के रूप में परिवर्तन हो जाता है
येनं – यह अभिलाषा ( जो रजो गुण से उत्पन्न होता है और क्रोध के रूप में परिवर्तन हो जाता है )
इह – ज्ञान योग के लिए
वैरिणं विद्धि – पहचानो कि वह एक शत्रु है

सरल अनुवाद

भगवान श्री कृष्ण ने उत्तर दिया –
वह कारण जिसके बारे में तुमने प्रश्न किया ( लौकिक सुख ) , वह सर्व भोक्त अभिलाषा ही है , जो रजो गुण से उत्पन्न होता है ( अनुराग ) ; यह अभिलाषा ( निरुद्ध रूप में ) भयानक पाप करने को प्रेरित करता है ( उसे जो इन अभिलाषाओं को निरुद्ध करने का प्रयास करता है ) और क्रोध के रूप में परिवर्तन हो जाता है ; पहचानो कि यह अभिलाषा ( जो रजो गुण से उत्पन्न होता है और क्रोध के रूप में परिवर्तन हो जाता है ) ज्ञान योग के लिए एक शत्रु है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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