४.३४ – तद्विध्दि प्रणिपातेन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ४

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श्लोक

तद्विध्दि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया ।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं  ज्ञानिनस्तत्वदर्शिनः ॥

पद पदार्थ

प्रणिपातेन – उचित ढंग से प्रणाम करके
परिप्रश्नेन – उचित दृष्टिकोण से प्रश्न पूछकर
सेवया – सेवा करके
तत् – वह दिव्य ज्ञान
विध्दि – जानना (ज्ञानियों से)
तत्त्व दर्शिनः:- जिन्हें आत्म स्वरूप ज्ञान का एहसास हुआ  है
ज्ञानिना:- ज्ञानी
वे – तुम्हे
ज्ञानं  – स्वयं के बारे में ज्ञान
उपदेक्ष्यन्ति – (तुम्हारी पूजा आदि से प्रसन्न होकर) उपदेश देंगे

सरल अनुवाद

उचित रीति से प्रणाम करके, उचित भाव से प्रश्न पूछकर तथा सेवा करके उस दिव्य ज्ञान को  ज्ञानियों से जानो; जिन ज्ञानियों को आत्मज्ञान का एहसास  हो गया है, वे (तुम्हारी पूजा आदि से प्रसन्न होकर) तुम्हें आत्मज्ञान के बारे में उपदेश देंगे।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुजदासी

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