श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानस: |
शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति ||
पद पदार्थ
योगी – योग अभ्यासी
एवं – इस प्रकार
आत्मानं – मन को
सदा – हमेशा
युञ्जन् – ध्यान केंद्रित (मुझपर)
नियतमानस: – ( फलस्वरूप) अनुशासित मन के साथ
मत् संस्थां – मुझमें रहकर
निर्वाण परमां – भौतिक शरीर से मुक्त होने की अंतिम अवस्था
शान्तिं – शान्ति
अधिगच्छति – प्राप्त करता है
सरल अनुवाद
इस प्रकार, योग अभ्यासी , मन को हमेशा (मुझपर) ध्यान केंद्रित, और ( उसके फलस्वरूप) अनुशासित मन के साथ, मुझमें रहकर भौतिक शरीर से मुक्त होने की अंतिम अवस्था की शान्ति प्राप्त करता है |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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