७.१८ – उदाराः सर्व एवैते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ७

<< अध्याय ७ श्लोक १७

श्लोक

उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम् ।
आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम् ॥

पद पदार्थ

एते सर्वे एव – ये सभी
उदाराः – उदार हैं
ज्ञानी तु – मगर ज्ञानी
( मे ) आत्मा एव – ( मुझे ) थामता है
मे मतं – मेरा सिद्धांत
युक्तात्मा – जो मेरे साथ रहना चाहता है
स: – वह
मामेव – केवल मुझे
अनुत्तमां गतिम् आस्थितः – ( मुझे ) अद्वितीय लक्ष्य के रूप में रखकर

सरल अनुवाद

ये सभी उदार हैं, मगर ज्ञानी ही ( मुझे ) थामता है – यह मेरा सिद्धांत है | केवल मुझे अद्वितीय लक्ष्य के रूप में रखकर , क्या वही नहीं है जो मेरे साथ रहना चाहता है ?

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय ७ श्लोक १९

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/7-18/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org