श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः ।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते ॥
पद पदार्थ
अहं – मैं
वे- तुम्हें
इदं ज्ञानं – यह ज्ञान (मेरे बारे में)
सविज्ञानं – महान/विशेष ज्ञान के साथ
अशेषतः – पूरी तरह
वक्ष्यामि – समझाते हुए;
यत् – वह ज्ञान
भूय: – फिर
ज्ञातव्यं – जो ज्ञात जानने के बाद
अन्यत् – और कुछ भी
न अवशिष्यते – नहीं रहता
सरल अनुवाद
मैं तुम्हें यह ज्ञान (अपने विषय में) विशेष ज्ञान सहित पूरी तरह समझा रहा हूँ; और फिर वह ज्ञात जानने के बाद और कुछ भी (जानने योग्य]।शेष नहीं रहता |
अडियेन् कण्णम्माळ् रामनुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/7-2/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org