७.१ – मय्यासक्तमनाः पार्थ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ७

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श्लोक

श्री भगवान् उवाच
मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं  युञ्जन्मदाश्रय : ।
असंशयं  समग्रं  मां  यथा  ज्ञास्यसि तच्छृणु  ॥

पद पदार्थ

श्री भगवान् उवाच – भगवान श्रीकृष्ण ने कहा
पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!
मयि – मुझमें
आसक्तमना:- अत्यंत आसक्त मन से
मद्राश्रय: – मुझ पर आश्रय  करते हुए
योगं युञ्जन् – तुम  जो भक्ति योग शुरू करते हो 
मां – मैं (जो उस योग का लक्ष्य हूँ)  
असंशयं – बिना किसी संदेह के
समग्रं – पूरी तरह से
यथा ज्ञास्यसि – जिस ज्ञान से जानोगे 
तत् – उस  ज्ञान
श्रुणु- ध्यान से सुनो

सरल अनुवाद

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, हे कुन्तीपुत्र! तुम जो मुझमें अत्यंत आसक्त मन रखकर और मुझ पर आश्रय करके भक्ति योग का आरंभ करते हो, उस ज्ञान के बारे में मेरी बात ध्यान से सुनो जिसके माध्यम से तुम मेरे (जो उस योग का लक्ष्य है)  बारे में पूरी तरह से जान सकते हो।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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