११.४९ – मा ते व्यथा मा च विमूढभावो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

मा ते व्यथा मा च विमूढभावो दृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्ममेदम्।
व्यपेतभीः प्रीतमनाः पुनस्त्वं तदेव मे रूपमिदं प्रपश्य।।

पद पदार्थ

मम – मेरे
ईदृक् – ऐसे
इदं घोरं रूपं – इस भयंकर रूप
दृष्ट्वा – को देखकर
ते – तुम्हें
व्यथा – संताप
मा (भूत ) – मुक्त हो जाओ
विमूढ भाव: च – व्याकुलता
मा (भूत ) – मुक्त हो जाओ
व्यपेतभीः – भय से मुक्त होकर
प्रीत मनाः – प्रसन्न मन से
त्वं – तुम
तत् एव मे इदं रूपं – इस रूप जिसका तुम अभ्यस्त हो
पुन: प्रपश्य – पुनः देखोगे

सरल अनुवाद

मेरे इस भयंकर रूप को देखकर जो संताप और व्याकुलता तुम्हें हुई है, उससे मुक्त हो जाओ; भय से मुक्त होकर प्रसन्न मन से तुम पुनः इस रूप को देखोगे, जिसका तुम अभ्यस्त हो।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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