श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च |
निर्ममो निरहङ्कार: समदु:खसुख: क्षमी ||
पद पदार्थ
सर्व भूतानाम् अद्वेष्टा – किसी भी प्राणी से घृणा नहीं करना
मैत्र:- सभी प्राणियों के प्रति मित्रता से रहना
करुण एव च – उनके प्रति दया दिखाना (जब वे पीड़ित हों)
निर्मम: – अधिकार की भावना से मुक्त होना
निरहङ्कार:-अहङ्कार से मुक्त होना
सम दु:ख सुख: – सुख और दुःख को समान रूप से देखना
क्षमी – सहनशील हो
सरल अनुवाद
जो, किसी भी प्राणी से घृणा नहीं करता, सभी प्राणियों के प्रति मित्रता रखता है, उनके प्रति दया दिखाता है (जब वे पीड़ित हों), अधिकार की भावना से मुक्त होता है, अहङ्कार से मुक्त होता है, सुख और दुख को समान रूप से देखता है और सहनशील होता है…..
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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