१२.१५ – यस्मान् नोद्विजते लोको

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १२

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श्लोक

यस्मान् नोद्विजते लोको लोकान् नोद्विजते च य: |
हर्षामर्षभयोद्वेगै: मुक्तो य: स च मे प्रिय: ||

पद पदार्थ

यस्मात् – उस कर्म योग निष्ठ (कर्म योग अभ्यासी) से
लोक: – यह संसार
न उद्विजते – भय से कांपता नहीं
य: – वह
लोकात् – इस संसार से
न उद्विजते – भय से कांपता नहीं
य: – वह
हर्षामर्ष भय उद्वेगै: मुक्त: – जो (इस प्रकार एक के प्रति) आनंद से मुक्त है, ( एक के प्रति) क्रोध से मुक्त है, (एक के प्रति) भय से मुक्त है और (एक के प्रति) कंपन से मुक्त है।
स: च – वह भी
मे – मुझे
प्रिय: – प्रिय है

सरल अनुवाद

वह कर्मयोग निष्ठ (कर्मयोग का अभ्यासी) जिससे संसार भय से कांपता नहीं , जो इस संसार से भय से  कांपता नहीं हो , जो (इस प्रकार एक के प्रति) आनंद से मुक्त है, ( एक के प्रति) क्रोध से मुक्त है, (एक के प्रति) भय से मुक्त है और (एक के प्रति) कंपन से मुक्त है, वह भी मुझे प्रिय है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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