१३.२३ – य एनं वेत्ति पुरुषं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १३

<< अध्याय १३ श्लोक २२

श्लोक

य एनं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणैः सह।
सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते।।

पद पदार्थ

एनं पुरुषं – इस जीवात्मा जिसे पहले समझाया गया था
प्रकृतिं च – तथा प्रकृति
गुणैः सह – सत्व, रजस ,तमस आदि गुणों वाली
य वेत्ति – ठीक से जानता है
स: – वह
सर्वथा वर्तमान: अपि – हालांकि देव (आकाशीय), मनुष्य (मानव), तिर्यक (पशु) या स्थावर (पौधा) जैसे किसी भी शरीर में बंधा होने पर भी
भूय: न अभिजायते – पुनः जन्म नहीं लेता

सरल अनुवाद

जो मनुष्य इस जीवात्मा को, जिसे पहले समझाया गया था, तथा सत्व, रजस ,तमस आदि गुणों वाली प्रकृति को ठीक से जानता है, वह हालांकि देव (आकाशीय), मनुष्य (मानव), तिर्यक (पशु) या स्थावर (पौधा) जैसे किसी भी शरीर में बंधा होने पर भी पुनः जन्म नहीं लेता।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय १३ श्लोक २४

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/13-23/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org