१४.२ – इदं ज्ञानमुपाश्रित्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १४

<< अध्याय १४ श्लोक १

श्लोक

इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः।
सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च।।

पद पदार्थ

इदं ज्ञानं – इस ज्ञान (जिसे समझाया जाना है)
उपाश्रित्य – प्राप्त कर लेते हैं
मम साधर्म्यम् – मेरे साथ समानता
आगताः – प्राप्त कर लेंगे
सर्गे अपि न उपजायन्ते – यहाँ न तो उनका सृजन होगा
प्रलये न व्यथन्ति च – न ही विनाश

सरल अनुवाद

जो इस ज्ञान को प्राप्त कर लेते हैं (जिसे समझाया जाना है), वे मेरे साथ समानता प्राप्त कर लेंगे, और न तो यहाँ उनका सृजन होगा और न ही विनाश।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय १४ श्लोक ३

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/14-2/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org