१५.४ – तम् एव चाद्यं पुरुषं प्रपद्येद्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १५

.<< अध्याय १५ श्लोक ३ एवं ३.५

श्लोक

तम् एव चाद्यं पुरुषं प्रपद्येद् यत: प्रवृत्ति: प्रसृता  पुराणी ।।

पद पदार्थ

आद्यं – हर वस्तु का आदि स्वामी होना
यत: पुराणी प्रवृत्ति: प्रसृता – जिनसे, (आत्माओं का) तीन गुणों से सम्बन्दित विषयों के साथ संबंध अनादिकाल से जारी है
तम् पुरुषम् एव – केवल वही सर्वोच्च भगवान के प्रति
प्रपद्येत् – समर्पण करना चाहिए (अज्ञानता आदि को दूर करने के लिए)

सरल अनुवाद

जीवात्मा को (अज्ञानता आदि को दूर करने के लिए) केवल उस सर्वोच्च भगवान के प्रति समर्पण करना चाहिए, जो हर वस्तु  का आदि स्वामी है और जिससे (आत्माओं का) तीन गुणों से सम्बन्दित  विषयों के साथ संबंध अनादिकाल से जारी है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

>> अध्याय १५ श्लोक ५

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/15-4/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org