१६.३ – तेजः क्षमा धृतिः शौचम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १६

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श्लोक

तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।।

पद पदार्थ

तेजः – (बुरे लोगों द्वारा) अपराजित रहना
क्षमा – (नुकसान पहुँचाने वालों के प्रति भी) सहनशीलता रखना
धृतिः – (भयंकर परिस्थितियों में भी) दृढ़ रहना
शौचं – (शास्त्र में बताए गए) गतिविधियों में संलग्न रहने के लिए (मन, वाणी और शरीर से) पवित्रता रखना
अद्रोह: – दूसरों के श्रेष्ठ कार्यों में हस्तक्षेप न करना
नातिमानिता – अभिमान का अभाव (ऐसे गुण)
दैवीं सम्पदम् अभिजातस्य – उन लोगों में जिनका दिव्य जन्म हुआ है (भगवान के आदेश का पालन करने के लिए)
भवन्ति – विद्यमान हैं
भारत – हे भारतवंशी!

सरल अनुवाद

(बुरे लोगों द्वारा) अपराजित रहना, (नुकसान पहुँचाने वालों के प्रति भी) सहनशीलता रखना, (भयंकर परिस्थितियों में भी) दृढ़ रहना, (शास्त्र में बताए गए) गतिविधियों में संलग्न रहने के लिए (मन, वाणी और शरीर से) पवित्रता रखना, दूसरों के श्रेष्ठ कार्यों में हस्तक्षेप न करना, अभिमान का अभाव (ऐसे गुण) उन लोगों में विद्यमान हैं, जिनका दिव्य जन्म हुआ है (भगवान के आदेश का पालन करने के लिए), हे भारतवंशी!

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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