श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिता: |
मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः ||
पद पदार्थ
अहंकारं – अहंकार (यह सोचना कि सब कुछ अपने क्षमता पर पूरा किया जा सकता है)
बलं – (कि मेरी क्षमता सब कुछ प्राप्त करने के लिए पर्याप्त है)आत्मबल
दर्पं – अभिमान (यह सोचना कि स्वयं के समान कोई नहीं है)
कामं – वासना ( यह सोचना कि मेरी इच्छा से ही सब कुछ पूरा करने की क्षमता है )
क्रोधं च – और क्रोध (ऐसी उपलब्धियों में बाधा उत्पन्न करने वाले हर व्यक्ति को नष्ट करना)
संश्रिता:- पकड़े रहना
आत्म परदेहेषु माम् – ऐसे व्यक्तियों और अन्य लोगों में उपस्थित मेरे प्रति ( जो सभी को नियंत्रित करता हूँ)
अभ्यसूयका: – ईर्ष्या करना (अपने धूर्त तरीकों से मुझ पर दोष लगाना)
प्रद्विषन्त: – (मुझे) सहन करने में असमर्थ
(वे जैसा कि पहले बताया गया है, विभिन्न यज्ञ आदि में संलग्न हैं)
सरल अनुवाद
अहंकार (यह सोचना कि सब कुछ अपने क्षमता पर पूरा किया जा सकता है), (कि मेरी क्षमता सब कुछ प्राप्त करने के लिए पर्याप्त है)आत्मबल, अभिमान (यह सोचना कि स्वयं के समान कोई नहीं है), वासना (यह सोचना कि मेरी इच्छा से ही सब कुछ पूरा करने की क्षमता है ) और क्रोध (ऐसी उपलब्धियों में बाधा उत्पन्न करने वाले हर व्यक्ति को नष्ट करना ), मेरे प्रति ईर्ष्या रखना (अपने धूर्त तरीकों से मुझ पर दोष लगाना) ऐसे व्यक्तियों और अन्य लोगों में उपस्थित मेरे प्रति ( जो सभी को नियंत्रित करता हूँ) और (मुझे) सहन करने में असमर्थ (वे जैसा कि पहले बताया गया है, विभिन्न यज्ञ आदि में संलग्न हैं )।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/16-18/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org