१८.४७ – स्वभावनियतं कर्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

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श्लोक

स्वभावनियतं कर्म कुर्वन् नाप्नोति किल्बिषम् ||

पद पदार्थ

स्वभाव नियतं कर्म – कर्म जो स्वाभाविक रूप से [उसकी प्रकृति के लिए] उपयुक्त
कुर्वन् – जो करता है
किल्बिषम् – संसार जो पाप का परिणाम है
न अप्नोति – प्राप्त नहीं होगा

सरल अनुवाद

जो मनुष्य अपने स्वाभाविक रूप से [उसकी प्रकृति के लिए] उपयुक्त कर्म करता है, उसे संसार , जो पाप का परिणाम है ,प्राप्त नहीं होगा।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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