१८.६३ – इति ते ज्ञानम् आख्यातम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

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श्लोक

इति ते ज्ञानम् आख्यातं गुह्याद् गुह्यतरं मया |
विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु ||

पद पदार्थ

इति – इस प्रकार
गुह्याद् गुह्यतरं – रहस्यों में सबसे गुप्त
ज्ञानं – ज्ञान (मुक्ति प्रदान करने वाला)
ते – तुम्हें
मया – मेरे द्वारा
आख्यातं – समझाया गया;
एतत् – यह
अशेषेण विमृश्य – पूर्ण विश्लेषण करते हुए
यथा इच्छसि – अपनी क्षमता के अनुसार जो भी तुम चाहते हो
तथा कुरु – तुम उसे करो

सरल अनुवाद

इस प्रकार रहस्यों में भी सबसे गुप्त ज्ञान (मुक्ति प्रदान करने वाला) मेरे द्वारा तुम्हें समझाया गया है, इसका पूर्ण विश्लेषण करके तुम अपनी क्षमता के अनुसार जो चाहते हो, उसे करो।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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