१.३२ – न काङ्क्षे विजयं कृष्ण

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १

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श्लोक
न काङ्‍क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च ।
किं नो राज्येन गोविंद किं भोगैर्जीवितेन वा ৷৷

पद पदार्थ

कृष्ण – हे कृष्ण !
विजयं न काङ्‍क्षे – मुझे जीत की कोई अभिलाषा नहीं है
राज्यं – राज्य
सुखानि च – और सुख की
न काङ्‍क्षे – इच्छा नहीं है
गोविन्द – हे गोविन्द !
न: – हमें
राज्येन किम – इस राज्य से क्या उपयोग है ?
भोगै: – सारे भोग्य वस्तुओं ( फूलों के माला , गहने )
जीवितेन वा – इस जीवन से
किम – क्या उपयोग ?

सरल अनुवाद

हे कृष्ण ( जो सारे धरती को आनंद पहुँचाता है ) ! मुझे जीत की कोई अभिलाषा नहीं है ; न कि राज्य और सुखों मे कोई इच्छा | हे गोविन्द ( जो गायों को हर्षित रखता है ; जो इन्द्रियों को अत्यंत खुशी देता है ) ! हमे इस राज्य से क्या उपयोग है ? इन सारे भोग्य वस्तुओं तथा हमारे जीवन का क्या उपयोग है ?

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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