१.३६ – निहत्य धार्तराष्ट्रान् न:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १

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श्लोक

निहत्य धार्तराष्ट्रान् न: का प्रीतिः स्याज्जनार्दन ।
पापमेवाश्रयेदस्मान्‌ हत्वैतानाततायिनः ৷৷

पद पदार्थ

जनार्दन – हे जनार्दन !
निहत्य – उनको मारके
धार्तराष्ट्रान् – धृतराष्ट्र के पुत्रों को
न: – हमें
का प्रीतिः स्यात्‌ – क्या आनंद मिलेगा?
आततायिनः – मार डालने की प्रयास करते हुए
एतान् – उनको
हत्वै – मारने से
अस्मान् – हम
पापं – पापों को
अश्रयेदेव – निसंदेह जमा करेंगे

सरल अनुवाद

हे जनार्दन ! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या आनंद मिलेगा? उनको मार डालने की प्रयास करते हुए तथा उनको मारने से हम पापों को निसंदेह जमा करेंगे |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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