१.३८ – यद्यपि येते न पश्यन्ति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १

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श्लोक

यद्यपि येते न पश्यन्ति लोभोपहत चेतसः ।
कुल क्षय कृतं दोषं मित्र द्रोहे च पातकम्‌ ৷৷

पद पदार्थ

लोभोपहत चेतसः – राज्य के लोभ से जो मूर्खतापन से भरे हैं
येते – दुर्योधन जैसे लोग
कुल क्षय कृतं दोषं – एक कुल वंश को पराजित करने से जो पाप लगता है
मित्र द्रोहे पातकं च – मित्रों को धोखा देने से जो पाप लगता है
यदा अपि न पश्यन्ति – उसका एहसास नहीं हुआ है

सरल अनुवाद

दुर्योधन जैसे लोगों को, जो राज्य के लोभ से मूर्खतापन से भरे हैं, एक कुल वंश को पराजित करने से जो पाप लगता है और मित्रों को धोखा देने से जो पाप लगता है , उसका एहसास नहीं हुआ है |

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अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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