१.४४ – उत्सन्नकुलधर्माणां

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १

<< अध्याय १ श्लोक १.४३

श्लोक

उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन ।
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ৷৷

पद पदार्थ

जनार्दन – हे जनार्दन !
उत्सन्नकुलधर्माणां – जो अपने कुल के पारम्परिक नियम तथा धर्म को खो दिया
मनुष्याणां – उन जैसे मनुष्यों को
नरके – नरक में
नियतं वास: भवती – निरंतर निवास की आज्ञा प्राप्त हो जाती है
इति – इस प्रकार
अनुशुश्रुम – हमने सुना है

सरल अनुवाद

हे जनार्दन ! हमने सुना है कि जो अपने कुल के पारम्परिक नियम तथा धर्म को खो देतें हैं , उन जैसे मनुष्यों को नरक में निरंतर निवास की आज्ञा प्राप्त हो जाती है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>>अध्याय १ श्लोक १.४५

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/1-44/

संगृहीत- http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org