१०.१२ भाग २ – पुरुषं शाश्वतं दिव्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १०

<< अध्याय १० श्लोक १२ भाग १

श्लोक

पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् ॥

पद पदार्थ

शाश्वतं दिव्यं पुरुषं – शाश्वत रूप से विद्यमान दिव्य आत्मा
आदि देवं – प्रथम स्वामी
अजं – जो (भौतिक इच्छा के परिणामस्वरूप) जन्म नहीं लेता
विभुं – सर्व-भूत

सरल अनुवाद

आपको शाश्वत रूप से विद्यमान दिव्य आत्मा , प्रथम स्वामी,जो (भौतिक इच्छा के परिणामस्वरूप) जन्म नहीं लेता और सर्व-भूत के रूप में जाना जाता है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय १० श्लोक १३

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/10-12-part-2/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org