१०.१४ – सर्वमेतदृतं मन्ये

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १०

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श्लोक

सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव।
न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवाः ॥

पद पदार्थ

केशव – हे केशव !
मां – मुझे
यत् वदसि – तुम्हारी इन सारी सम्पत्तियों और शुभ गुणों के बारे में समझा रहे हो
सर्वम् एतद् – वे सभी
रुतं मन्ये – मैं विश्वास करता हूँ कि सत्य हैं

(इस प्रकार)
भगवन् – हे ज्ञान, योग्यता आदि से परिपूर्ण!
ते व्यक्तिं – अभिव्यक्त करना
देवा: – देवों
न हि विदु – नहीं जानते हैं
दानवाः – राक्षस या असुर
न हि विदु: – नहीं जानते हैं

सरल अनुवाद

हे केशव ! मैं विश्वास करता हूँ कि तुम मुझे जो तुम्हारी इन सारी सम्पत्तियों और शुभ गुणों के बारे में समझा रहे हो, वे सभी सत्य हैं | हे ज्ञान, योग्यता आदि से परिपूर्ण! न तो देवों और न ही राक्षस या असुर तुम्हारे बारे में अभिव्यक्त करना जानते हैं |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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