१०.१५ – स्वयम् एवात्मनाऽऽत्मानं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १०

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श्लोक

स्वयम् एवात्मनाऽऽत्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम ।
भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते ॥

पद पदार्थ

पुरुषोत्तम – हे पुरुषोत्तम (सर्वोच्च भगवान जो पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ हैं)!
भूत भावन! – हे समस्त प्राणियों के सृष्टिकर्त्ता !
भूतेश! – हे समस्त वस्तुओं के नियंता!
देवदेव! – हे समस्त देवताओं के स्वामी!
जगत्पते! – हे ब्रह्मांड के स्वामी!
त्वं – तुम
स्वयम् एव आत्मना – [अपने] ज्ञान से
आत्मानं – स्वयं को
वेत्थ – जानते हो

सरल अनुवाद

हे पुरुषोत्तम (सर्वोच्च भगवान जो पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ हैं)! हे समस्त प्राणियों के सृष्टिकर्त्ता ! हे समस्त वस्तुओं के नियंता! हे समस्त देवताओं के स्वामी! हे ब्रह्मांड के स्वामी! [केवल] तुम स्वयं को [अपने] ज्ञान से जानते हो |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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