१०.२४ – पुरोधसां च मुख्यं माम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १०

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श्लोक

पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् ।
सेनानीनामहं स्कन्दः सरसामस्मि सागरः ॥

पद पदार्थ

पार्थ – हे कुंतीपुत्र !
पुरोधसां – पुरोहितों में
मुख्यं – सबसे महत्वपूर्ण
बृहस्पतिं च – मैं बृहस्पति [इंद्र के मुख्य पुजारी] हूँ
मां विद्धि – मुझे जानो
सेनानीनां – सेनापतियों में
स्कन्दः – (सर्वश्रेष्ठ) स्कन्ध (सुब्रमण्य) हूँ
अहम् – मैं
सरसां – तालाबों (जलाशयों) में
सागरः – (सर्वश्रेष्ठ) सागर
अहम् अस्मि – मैं हूँ

सरल अनुवाद

हे पार्थ! जानो कि पुरोहितों में, मैं परम श्रेष्ठ बृहस्पति [इंद्र के मुख्य पुजारी] हूँ ; मैं सेनापतियों में (सर्वश्रेष्ठ) स्कन्ध (सुब्रमण्य) हूँ; मैं तालाबों (जलाशयों) में (सर्वश्रेष्ठ) सागर हूँ |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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