१०.३४ – मृत्युः सर्वहरश्चाहम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १०

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श्लोक

मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्।
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा।।

पद पदार्थ

सर्वहर – सभी प्राणियों के जीवन को हर लेती
मृत्युः च अहम् – मैं वह मृत्यु हूँ
भविष्यताम् – सृजित प्राणियों के लिए
उद्भव च – सृजन का कार्य
अहम् – मैं हूँ
नारीणां – महिलाओं में
श्री: – श्रीदेवी, श्री महालक्ष्मी (जो महिलाओं की नेता है)
कीर्तिः – कीर्ति देवी (प्रसिद्धि की इष्ट देवी)
वाक् – वाक् देवी (वाणी की इष्ट देवी)
स्मृति: – स्मृति देवी (स्मृति की इष्ट देवी)
मेधा – मेधा देवी (बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी)
धृतिः – धृति देवी (साहस की अधिष्ठात्री देवी)
क्षमा च – क्षमा देवी (सहनशीलता की इष्ट देवी)
अहम् – मैं हूँ

सरल अनुवाद

मैं वह मृत्यु हूँ जो सभी प्राणियों के जीवन को हर लेती है और सृजित प्राणियों के लिए सृजन का कार्य हूँ ; महिलाओं में, मैं श्रीदेवी, श्री महालक्ष्मी (जो महिलाओं की नेता है) हूँ ; कीर्ति देवी (प्रसिद्धि की इष्ट देवी); वाक् देवी (वाणी की इष्ट देवी); स्मृति देवी (स्मृति की इष्ट देवी); मेधा देवी (बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी); धृति देवी (साहस की अधिष्ठात्री देवी) और क्षमा देवी (सहनशीलता की इष्ट देवी) हूँ |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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