१०.३८ – दण्डो दमयतामस्मि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १०

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श्लोक

दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्।।

पद पदार्थ

दमयतां – हद पार करने वालों को दण्ड देने वालों का
दण्ड: अस्मि – मैं दण्ड हूँ
जिगीषतां – जो विजयी होने की इच्छा रखते हैं
नीति: अस्मि – मैं उन लोगों की राजनीति (जो उनकी जीत में मदद करती है) हूँ
गुह्यानां च – रहस्यों के बीच
मौनं एव अस्मि – मैं मौन हूँ
ज्ञानवतां – बुद्धिमानों की
ज्ञानं – बुद्धि
अहं – मैं हूँ

सरल अनुवाद

मैं हद पार करने वालों को दण्ड देने वालों का दण्ड हूँ ; मैं उन लोगों की राजनीति (जो उनकी जीत में मदद करती है) हूँ जो विजयी होने की इच्छा रखते हैं ; रहस्यों के बीच मैं मौन हूँ; मैं बुद्धिमानों की बुद्धि हूँ |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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