श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन।
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्।।
पद पदार्थ
अर्जुन – हे अर्जुन !
सर्वभूतानां – सभी वस्तुओं में
यत् बीजं – जो कुछ भी उपादान कारण (भौतिक कारण) है [एक पौधे के बीज की तरह]
तत् अपि च अहं – वह मैं ही हूँ
चराचरं भूतं – सभी चल और अचल वस्तुओं में
मया विना- मुझसे [ जो सबकी अन्तर्यामी हूँ ] अलग हो गई हो
यत् स्यात् – यदि हम पता लगाने का प्रयास करें
तत् न अस्ति – तो ऐसी कोई वस्तु नहीं है
सरल अनुवाद
हे अर्जुन ! सभी वस्तुओं में, जो कुछ भी उपादान कारण (भौतिक कारण) है [एक पौधे के बीज की तरह], वह मैं ही हूँ ; यदि हम सभी चल और अचल वस्तुओं में किसी ऐसी वस्तु का पता लगाने की प्रयास करें जो मुझसे [ जो सबकी अन्तर्यामी हूँ ] अलग हो गई हो, तो ऐसी कोई वस्तु नहीं है |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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