श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप।
एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया।।
पद पदार्थ
परन्तप – हे शत्रुओं का अत्याचारी !
मम – मेरे
दिव्यानां – शुभ
विभूतीनां – संपत्ति/वैभव
अंत: – कोई अंत
न अस्ति – नहीं है
एष – मैने अब तक जो कुछ भी बताया है
विभूते: विस्तर: तु – इन महिमाओं के विस्तार के विषय में
मया – मेरे द्वारा
उद्देशतः प्रोक्त: – उसी की महानता को प्रकट करने के लिए मेरे द्वारा इसका सारांश प्रस्तुत किया गया है
सरल अनुवाद
हे शत्रुओं का अत्याचारी ! मेरे शुभ संपत्ति/वैभव का कोई अंत नहीं है |इन महिमाओं के विस्तार के विषय में मैने अब तक जो कुछ भी बताया है, उसी की महानता को प्रकट करने के लिए मेरे द्वारा इसका सारांश प्रस्तुत किया गया है |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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