१०.४१ – यद् यद् विभूतिमत्सत्त्वं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १०

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श्लोक

यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंशसंभवम्।।

पद पदार्थ

यद् यद् सत्त्वं – जिस जिस प्राणी
विभूतिमत् – ऐसी महिमा है जो उसके द्वारा नियंत्रित होती है
श्रीमत् – तेजस्विता युक्त
ऊर्जितम् एव वा – शुभ कार्यों के आरंभ हेतु स्थिर रहता है
तत् तत् – उन सभी प्राणियों ने
त्वं – तुम
मम – मेरी (मैं, जिसके पास असीमित क्षमताएँ हैं )
तेजो अंश संभवम् एव अवगच्छ – जानो कि मेरी नियंत्रण क्षमता के एक अंश से प्राप्त किया था

सरल अनुवाद

जिस जिस प्राणी के पास ऐसी महिमा है जो उसके द्वारा नियंत्रित होती है, तेजस्विता युक्त तथा शुभ कार्यों के आरंभ हेतु स्थिर रहता है; जानो कि उन प्राणियों ने इसे, मेरी नियंत्रण क्षमता के एक अंश से प्राप्त किया था |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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