१०.४२ – अथवा बहुनैतेन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १०

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श्लोक

अथवा बहुनैतेन किं ज्ञानेन तवार्जुन।
विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्।।

पद पदार्थ

अर्जुन – हे अर्जुन !
अथवा – मगर
बहुना एतेन ज्ञानेन – इस ज्ञान का, जो कई अलग-अलग तरीकों से समझाया गया है
तव किं – तुम्हारे लिए क्या उपयोग है ?
अहं – मैं
इदं कृत्स्नं जगत् – इस सारे जगत्
एकांशेन – अपनी शक्ति के एक अंश से
विष्टभ्य स्थित: – पालन कर रहा हूँ

सरल अनुवाद

हे अर्जुन ! मगर इस ज्ञान का क्या उपयोग है ,जो तुम्हारे लिए मेरे द्वारा कई अलग-अलग तरीकों से समझाया गया है? मैं अपनी शक्ति के एक अंश से, इस सारे जगत् का पालन कर रहा हूँ |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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