१०.७ – एतां विभूतिं योगं च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १०

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श्लोक

एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः।
सोऽविक[म्पे]म्प्येन योगेन युज्यते नात्र संशयः ॥

पद पदार्थ

एतां मम विभूतिं – मेरा यह धन (अर्थात् सब कुछ मेरे नियंत्रण में होना )
मम योगं च – मेरे माहात्म्य, जो शुभ गुणों से युक्त और अशुभ गुणों का विपरीत है
य: – जो भी
तत्त्वतः वेत्ति – सच में जानता है
स: – वह
अविकम्पेन योगेन – स्थिर भक्ति योग के साथ
युज्यते – के साथ रह सकता है
अत्र – इस विषय में
न संशयः – कोई संदेह नहीं है

सरल अनुवाद

जो भी मेरा यह धन (अर्थात् सब कुछ मेरे नियंत्रण में होना )और मेरा माहात्म्य, जो शुभ गुणों से युक्त और अशुभ गुणों का विपरीत है, के बारे में सच में जानता है, वह स्थिर भक्ति योग के साथ रह सकता है | इस विषय में कोई संदेह नहीं है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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