११.२३ – रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रं महाबाहो बहुबाहूरुपादम्।
बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालं दृष्ट्वा लोकाः प्रव्यथितास्तथाऽहम्।।

पद पदार्थ

महाबाहो – हे शक्तिशाली भुजाओं वाले !
बहु वक्त्र नेत्रम् – जिसके अनेक मुखों और आँखें हो
बहु बाहूरुपादम् ​​- अनेक भुजाओं, जाँघों और पैरों वाले
बहु उदरं – अनेक पेटों वाले
बहु दंष्ट्राकरालं – अनेक दाँतों होने के कारण डरावना
महत् – विशाल
ते रूपं – तुम्हारा रूप
दृष्ट्वा – देखकर
लोकाः – इस संसार के निवासी
प्रव्यथिता – भयभीत हो गए हैं
तथा अहम् – मैं भी भयभीत हो गया हूँ

सरल अनुवाद

हे शक्तिशाली भुजाओं वाले! अनेक मुखों और आँखें, अनेक भुजाओं, जाँघों और पैरों, अनेक पेटों और दाँतों से युक्त तुम्हारा उस डरावना और विशाल रूप को देखकर इस संसार के निवासी और मैं  भयभीत हो गए हैं।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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