११.५१ – दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

अर्जुन उवाच
दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तवसौम्यं जनार्दन।
इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः।।

पद पदार्थ

अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहा
जनार्दन – हे जनार्दन!
इदं तव सौम्यं मानुषं रूपं – तुम्हारे इस सुंदर मानव रूप
दृष्ट्वा – को देखकर
इदानीं – अब
सचेताः – मेरा दिल फिर से शांत हो गया है
संवृत्तः अस्मि – संतुष्ट हो गया हूँ
प्रकृतिं गतः अस्मि – मैंने अपना संयम भी वापस पा लिया है

सरल अनुवाद

अर्जुन ने कहा – हे जनार्दन! अब, तुम्हारे इस सुंदर मानव रूप को देखकर, मेरा हृदय पुनः शांत और संतुष्ट हो गया है । मैंने अपना संयम भी वापस पा लिया है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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