श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
संजय उवाच
एवमुक्त्वा ततो राजन् महायोगेश्वरो हरि: |
दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम् ||
पद पदार्थ
संजय उवाच – संजय ने कहा
राजन् – हे राजा धृतराष्ट्र!
महा योगेश्वर: हरि: – कृष्ण भगवान, जो अद्भुत पहलुओं के साथ हैं
एवम् उक्त्वा – ऐसा कहते हुए
तत:- फिर
पार्थाय – कुंती के पुत्र को
परमं – अतुलनीय
ऐश्वरं – उनका (कृष्णके ) विशिष्ट रूप
रूपं – विश्वरूपं
दर्शयामास – प्रकट किया
सरल अनुवाद
संजय ने कहा – हे राजा धृतराष्ट्र! कृष्ण, भगवान, जो अद्भुत पहलुओं के साथ हैं, इस प्रकार कहते हुए, फिर कुंती के पुत्र को, अपने अतुलनीय विश्वरूप को, जो उनका विशिष्ट रूप है, प्रकट किया ।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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