१२.१० – अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १२

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श्लोक

अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव।
मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन् सिद्धिमवाप्स्यसि।।

पद पदार्थ

अभ्यासे अपि असमर्थ असि – यदि तुममें अपने मन को मुझमें लगाने की क्षमता नहीं है
मत् कर्म परम: भव – मेरे कार्यों में बड़ी निष्ठा से संलग्न रहो
मदर्थं कर्माणि कुर्वन् अपि – इस प्रकार मेरे कर्मों में लगकर भी
सिद्धिम् अवाप्स्यसि – (अभ्यास योग के द्वारा, अपने हृदय में मेरे प्रति दृढ़ आसक्ति उत्पन्न करके) तुम शीघ्र ही मेरे पास पहुँच जाओगे

सरल अनुवाद

यदि तुममें अपने मन को मुझमें लगाने की क्षमता नहीं है, तो मेरे कार्यों में बड़ी निष्ठा से संलग्न रहो; इस प्रकार मेरे कर्मों में लगकर (अभ्यास योग के द्वारा, अपने हृदय में मेरे प्रति दृढ़ आसक्ति उत्पन्न करके) तुम शीघ्र ही मेरे पास पहुँच जाओगे ।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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