१२.१९ – तुल्यनिन्दास्तुति: मौनी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १२

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श्लोक

तुल्यनिन्दास्तुति: मौनी सन्तुष्टो येन केनचित् |
अनिकेत: स्थिरमति: भक्तिमान् मे प्रियो नर: ||

पद पदार्थ

तुल्य निंदा स्तुति: – स्तुति और निंदा के प्रति समान होना
मौनी – चुप रहना (जब अन्य लोग उसकी प्रशंसा या निंदा करते हैं)
येन केनचित् सन्तुष्ट: – जो कुछ भी मिलता है उससे संतुष्ट रहना, भले ही वह महत्वहीन हो
अनिकेत:- घर आदि से विरक्त रहना
स्थिरमति:- आत्मा में दृढ़ मन होना
भक्तिमान् नर: -वह व्यक्ति जो मेरे प्रति प्रेम करता है
मे प्रिय:- मुझे प्रिय है

सरल अनुवाद

…जो स्तुति और निन्दा में समान है, जो चुप रहता है (जब अन्य लोग उसकी प्रशंसा या निंदा करते हैं), जो, जो कुछ भी मिलता है उससे संतुष्ट रहता है, भले ही वह महत्वहीन हो, जो घर आदि से विरक्त है और आत्मा में दृढ़ मन रखता है, जो व्यक्ति मेरे प्रति प्रेम करता है, वह मुझे प्रिय है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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