श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
क्लेशोऽधिकतरस्तेषामव्यक्तासक्तचेतसाम्।
अव्यक्ता हि गतिर्दुःखं देहवद्भिरवाप्यते।।
पद पदार्थ
अव्यक्ता सक्त चेतसां तेषां – उन कैवल्य निष्ठाओं, जो जीवात्मा स्वरूप की प्राप्ति में लगे रहते हैं
क्लेश: – कठिनाइयाँ
अधिकतर: – ज्ञानियों से भी अधिक होती है
अव्यक्ता गति: – आत्मा में लीन होने की मनःस्थिति
देहवद्भि: – जो लोग अपने शरीर में आसक्त रहते हैं
दुःखम् अवाप्यते हि – क्या बड़े संघर्षों से प्राप्त नहीं होती?
सरल अनुवाद
उन कैवल्य निष्ठाओं, जो जीवात्मा स्वरूप की प्राप्ति में लगे रहते हैं, उनकी कठिनाइयाँ ज्ञानियों से भी अधिक होती है; जो लोग अपने शरीर में आसक्त रहते हैं, क्या उनके लिए आत्मा में लीन होने की मनःस्थिति बड़े संघर्षों से प्राप्त नहीं होती?
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/12-5/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org