श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
श्री भगवानुवाच
इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रम् इत्यभिधीयते |
एतद्यो वेत्ति तं प्राहु: क्षेत्रज्ञ इति तद्विद: ||
पद पदार्थ
श्री भगवान उवाच – श्री भगवान बोले
कौन्तेय – हे अर्जुन!
इदं शरीरं – यह शरीर
क्षेत्रम् इति – क्षेत्र के रूप में (आत्मा के आनंद के लिए)
अभिधीयते – कहा जाता है
एतद्य: वेत्ति – जो इस शरीर को जानता है
तं – उसे
तद्विद: – आत्मज्ञानीयों (जो आत्मा के बारे में जानते हैं)
क्षेत्रज्ञ: इति प्राहु: – उसे क्षेत्रज्ञ (क्षेत्र का ज्ञाता) कहते हैं
सरल अनुवाद
श्री भगवान बोले – हे अर्जुन! इस शरीर को (आत्मा के आनंद के लिए) क्षेत्र कहा जाता है। आत्मज्ञानीयों (जो आत्मा के बारे में जानते हैं) ऐसे व्यक्ति को क्षेत्रज्ञ (क्षेत्र का ज्ञाता) कहते हैं।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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