श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान् गुणान् ।
पद पदार्थ
प्रकृतिस्थ: – पदार्थ से संबद्ध होने के कारण
पुरुषः – जीवात्मा
प्रकृतिजान् – ऐसे संबंध के कारण उत्पन्न
गुणान् – गुणों (सत्व, रजस् और तमस्) के माध्यम से उत्पन्न होने वाले सुख/दुःख
भुङ्क्ते हि – क्या वह आनंद नहीं ले रहा है?
सरल अनुवाद
क्या जीवात्मा, पदार्थ से संबद्ध होने के कारण , गुणों (सत्व, रजस् और तमस्) के माध्यम से उत्पन्न होने वाले सुख/दुःख का आनंद नहीं ले रहा है, जो ऐसे संबंध के कारण उत्पन्न होते हैं?
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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