१३.२०.५ – पुरुषः प्रकृतिस्थो हि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १३

<< अध्याय १३ श्लोक २०

श्लोक

पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान् गुणान् ।

पद पदार्थ

प्रकृतिस्थ: – पदार्थ से संबद्ध होने के कारण
पुरुषः – जीवात्मा
प्रकृतिजान् – ऐसे संबंध के कारण उत्पन्न
गुणान् – गुणों (सत्व, रजस् और तमस्) के माध्यम से उत्पन्न होने वाले सुख/दुःख
भुङ्क्ते हि – क्या वह आनंद नहीं ले रहा है?

सरल अनुवाद

क्या जीवात्मा, पदार्थ से संबद्ध होने के कारण , गुणों (सत्व, रजस् और तमस्) के माध्यम से उत्पन्न होने वाले सुख/दुःख का आनंद नहीं ले रहा है, जो ऐसे संबंध के कारण उत्पन्न होते हैं?

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय १३ श्लोक २१

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/13-20-5/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org