१३.२० – कार्यकारणकर्तृत्वे

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १३

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श्लोक

कार्यकारणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते।
पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते।।

पद पदार्थ

कार्य कारण कर्तृत्वे – शरीर और ग्यारह इंद्रियों द्वारा किए जाने वाले कार्यों
प्रकृति: – प्रकृति (जो जीवात्मा द्वारा व्याप्त है)
हेतुः – कारण के रूप में
उच्यते – समझाया गया है
पुरुषः – जीवात्मा
सुख दुःखानां भोक्तृत्वे – सुख-दुःख के अनुभव
हेतुः – का कारण (ऐसे अनुभवों का निवास होने के कारण)
उच्यते – समझाया गया है

सरल अनुवाद

प्रकृति (जो जीवात्मा द्वारा व्याप्त है) को शरीर और ग्यारह इंद्रियों [ज्ञान के लिए पांच इंद्रियों , गतिविधियों को करने के लिए पांच इंद्रियों और मन] द्वारा किए जाने वाले कार्यों के कारण के रूप में समझाया गया है ; जीवात्मा को सुख-दुःख के अनुभव का कारण (ऐसे अनुभवों का निवास होने के कारण) समझाया गया है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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