श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
कार्यकारणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते।
पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते।।
पद पदार्थ
कार्य कारण कर्तृत्वे – शरीर और ग्यारह इंद्रियों द्वारा किए जाने वाले कार्यों
प्रकृति: – प्रकृति (जो जीवात्मा द्वारा व्याप्त है)
हेतुः – कारण के रूप में
उच्यते – समझाया गया है
पुरुषः – जीवात्मा
सुख दुःखानां भोक्तृत्वे – सुख-दुःख के अनुभव
हेतुः – का कारण (ऐसे अनुभवों का निवास होने के कारण)
उच्यते – समझाया गया है
सरल अनुवाद
प्रकृति (जो जीवात्मा द्वारा व्याप्त है) को शरीर और ग्यारह इंद्रियों [ज्ञान के लिए पांच इंद्रियों , गतिविधियों को करने के लिए पांच इंद्रियों और मन] द्वारा किए जाने वाले कार्यों के कारण के रूप में समझाया गया है ; जीवात्मा को सुख-दुःख के अनुभव का कारण (ऐसे अनुभवों का निवास होने के कारण) समझाया गया है।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/13-20/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org