श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
तत् क्षेत्रं यच्च यादृक्च यद्विकारि यतश्च यत् |
स च यो यत्प्रभावश्च तत् समासेन मे श्रुणु ||
पद पदार्थ
तत् क्षेत्रम् – वह शरीर जिसे पिछले दो श्लोकों में क्षेत्र के रूप में प्रकाश डाला गया है
यत् च – यह किस सामग्री से बना है
यादृक् च – इसमें कौन सी सत्ताएं निवास करती हैं
यद्विकारि– इसके परिवर्तन
यत्: च – इसकी रचना का उद्देश्य
यत् – इसका वास्तविक स्वरूप क्या है
स: च य: – जीवात्मा का वास्तविक स्वरूप क्या है, जिसे पिछले दो श्लोकों में क्षेत्रज्ञ (क्षेत्र का ज्ञाता) के रूप में प्रकाश डाला गया है
यत् प्रभाव: च – उसकी महिमा क्या है
समासेन – संक्षेप में
मे श्रुणु – मुझसे सुनो
सरल अनुवाद
पिछले दो श्लोकों में जिस शरीर को क्षेत्र के रूप में प्रकाश डाला गया है,जैसे १) जिस सामग्री से यह बना है, २) इसमें निवास करने वालें सत्ताएं, ३) इसके परिवर्तन, ४) इसकी रचना का उद्देश्य, ५) इसका वास्तविक स्वरूप, ६) जीवात्मा का वास्तविक स्वरूप, जिसे क्षेत्रज्ञ (क्षेत्र का ज्ञाता) के रूप में प्रकाश डाला गया है और ७) उसकी महिमा आदि के बारे में मुझसे संक्षेप में सुनो |
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/13-3/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org