१३.५ – महाभूतान्यहङ्कारो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १३

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श्लोक

महाभूतान्यहङ्कारो बुद्धिरव्यक्तमेव च ​​|
इन्द्रियाणि दशैकं  च पञ्च चेन्द्रियगोचरा: ||

पद पदार्थ

महाभूतानि – पाँच महान तत्व
अहङ्कार: – भूतादि (जो उन तत्वों का कारण है)
बुद्धि: – महान् (जो ऐसे अहङ्कार का कारण है)
अव्यक्तम् एव च ​​- मूल प्रकृति (आदि पदार्थ, जो महान का कारण है)
दश एकं च इंद्रियाणि च – पाँच ज्ञान इन्द्रियों , पाँच कर्म इन्द्रियों और मन जो इन इन्द्रियों को नियंत्रित करता है – सभी मिलकर ११ इन्द्रियाँ
पञ्च इंद्रिय गोचर: च – पाँच इन्द्रियों के विषय, अर्थात, शब्द (ध्वनि), स्पर्श , रूप , रस (स्वाद) और गंध

सरल अनुवाद

पाँच महान तत्व, भूतादि (जो उन तत्वों का कारण है), महान (जो ऐसे अहङ्कार का कारण है), मूल प्रकृति (आदि पदार्थ, जो महान का कारण है),पाँच ज्ञान इन्द्रियों  , पाँच कर्म इन्द्रियों और मन जो इन इन्द्रियों को नियंत्रित करता है – सभी मिलकर ११  इन्द्रियाँ, और पाँच इन्द्रियों के विषय , अर्थात, शब्द (ध्वनि), स्पर्श , रूप , रस (स्वाद) और गंध …

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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