श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं सङ्घातश्चेतना धृति: |
एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम् ||
पद पदार्थ
इच्छा – इच्छा
द्वेष:-घृणा
सुखं – आनंद
दु:खं – दुःख
चेतना धृति: सङ्घात: – प्राणियों का संग्रह जो आत्मा को बनाए रखता है (खुशी/दुख का अनुभव करने और आनंद और मुक्ति प्राप्त करने के लिए)
एतत् – ये सब
सविकारम् – स्थितिभेद के साथ
क्षेत्रं – क्षेत्र (शरीर )
समासेन – संक्षेप में
उदाहृतम् – समझाया गया
सरल अनुवाद
…इच्छा, घृणा, आनंद, दुःख, प्राणियों का संग्रह जो आत्मा को बनाए रखता है (खुशी/दुःख का अनुभव करने और आनंद और मुक्ति प्राप्त करने के लिए) सभी को स्थितिभेद के साथ क्षेत्र (शरीर ) के रूप में संक्षेप में समझाया गया है।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/13-6/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org