१३.६ – इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १३

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श्लोक

इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं सङ्घातश्चेतना  धृति: |
एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम्   ||

पद पदार्थ

इच्छा – इच्छा
द्वेष:-घृणा
सुखं – आनंद
दु:खं – दुःख
चेतना धृति: सङ्घात: – प्राणियों का संग्रह जो आत्मा को बनाए रखता है (खुशी/दुख का अनुभव करने और आनंद और मुक्ति प्राप्त करने के लिए)
एतत् – ये सब
सविकारम् – स्थितिभेद के साथ
क्षेत्रं – क्षेत्र (शरीर )
समासेन – संक्षेप में
उदाहृतम् – समझाया गया

सरल अनुवाद

…इच्छा, घृणा, आनंद, दुःख, प्राणियों का संग्रह जो आत्मा को बनाए रखता है (खुशी/दुःख का अनुभव करने और आनंद और मुक्ति प्राप्त करने के लिए) सभी को स्थितिभेद के साथ क्षेत्र (शरीर ) के रूप में संक्षेप में समझाया गया है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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