१३.७ – अमानित्वम् अदंभित्वम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १३

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श्लोक

अमानित्वम् अदंभित्वम् अहिंसा क्षान्तिरार्जवम् |
आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्म विनिग्रह: ||

पद पदार्थ

अमानित्वम् – बड़ों का अनादर न करना
अदंभित्वम् – प्रसिद्धि के लिए दान में संलग्न न होना
अहिंसा – तीनों शक्तियों (मन, वाणी और कर्म) से किसी को नुकसान न पहुँचाना
क्षान्ति: – अन्य लोग चोट पहुँचाने पर भी मानसिक रूप से प्रभावित न होना
आर्जवम् – तीनों शक्तियों (मन, वाणी और कर्म) को दूसरों के प्रति सामंजस्य रखना
आचार्य उपासनं – आचार्य (शिक्षक, जो आत्मा के बारे में शिक्षा देतें हैं) की सेवा करना
शौचं – तीनों शक्तियों की शुद्धता (जो स्वयं के बारे में जानने और उसका अनुसरण करने में सहायक हैं)
स्थैर्यम् – दृढ़ रहना (शास्त्र द्वारा समझाए गए सिद्धांतों पर )
आत्म विनिग्रह: – मन को नियंत्रित करना (आत्मा के अलावा अन्य विषयों में संलग्न न होना)

सरल अनुवाद

बड़ों का अनादर न करना, प्रसिद्धि के लिए दान में संलग्न न होना, तीनों शक्तियों (मन, वाणी और कर्म) से किसी को नुकसान नहीं पहुँचाना, अन्य  लोग चोट पहुँचाने पर भी मानसिक रूप से प्रभावित नहीं होना, तीनों शक्तियों (मन, वाणी और कर्म) को  दूसरों  के प्रति सामंजस्य रखना, आचार्य (शिक्षक, जो आत्मा के बारे में शिक्षा देतें हैं) की सेवा करना, तीन शक्तियों की शुद्धता (जो स्वयं के बारे में जानने और उसका अनुसरण करने में सहायक होते हैं) रखना, दृढ़ रहना (शास्त्र द्वारा बताए गए सिद्धांतों पर) , मन को नियंत्रित करना (आत्मा के अलावा अन्य विषयों में संलग्न न होना)…

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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