श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते |
तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते ||
पद पदार्थ
रजसी (प्रवृद्धे) – जब रजोगुण बढ़ रहा हो
प्रलयं गत्वा – यदि आत्मा अपना शरीर त्याग देती है
कर्म संगीशु – उन लोगों के कुल में जो सांसारिक लाभ प्राप्त करने के लिए काम करते हैं
जायते – जन्म लेता है;
तथा – उसी प्रकार
तमसि (प्रवृद्धे) – जब तमो गुण बढ़ रहा हो
प्रलीन:- जो मर जाता है
मूढयोनिषु – अज्ञानी प्रजातियों में (जैसे जानवर, पौधे)
जायते – जन्म लेता है
सरल अनुवाद
यदि रजोगुण के बढते समय आत्मा अपना शरीर त्याग देती है, तो वह उन लोगों के कुल में जन्म लेता है जो सांसारिक लाभ प्राप्त करने के लिए काम करते हैं; यदि कोई व्यक्ति तमोगुण के बढते समय मर जाता है, तो वह अज्ञानी प्रजातियों (जैसे जानवर, पौधे) में जन्म लेता है।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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